आज Suraj के जैसा हिन् एक और समाचार मेरी नजर में आया, नासिर भाई, फूटबाल के प्रसिद्ध खिलाड़ी(अफ़सोसउन्होंने क्रिकेट नहीं खेला) आज जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं , २ छोटे-छोटे बच्चे हैं उनका क्या होगाभगवान(अगर कुछ ऐसा होता है तो) हिन् जाने ? सरकार और धनबाद फुटबाल संघ के लोग सहायता के नाम पर१५,०० रूपये दिए हैं । अब आप हिन् बतायिए इतने पैसों में क्या होगा इलाज ?
आपलोग भीदैनिक जागरण में प्रकाशित इस समाचार पर एक नजर डालें :
मौत के गोलपोस्ट पर खड़े हैं नासिर भाई
Jun 21, 11:43 am
धनबाद, गंगेश गुंज । नासिर दाद खान! कभी फुटबाल जगत का सितारा आज जिंदगी के आखिरी दिन गिन रहा है। वह बोन टीवी के शिकार हैं। डाक्टरों को कैंसर का भी शक है। मौत के 'गोलपोस्ट' पर खड़े राष्ट्रीय फुटबालर की स्थिति यह है कि अब उनमें बात तक करने की शक्ति नहीं है। छरहरी काया अब अस्थिपंजर हो गई है। गेंद अब उनके पाले से निकल चुकी है।
सरकार व शुभचिंतक की मदद ही उनकी जिंदगी को थोड़े और 'एक्स्ट्रा टाइम' तक ले जा सकती है। त्रासदी यह है कि सरकार को इस राष्ट्रीय खिलाड़ी का ख्याल नहीं आया। जिस धनबाद फुटबाल संघ के लिए उन्होंने जिंदगी झोंक दी, उसने भी मुंह मोड़ लिया।
लगभग सात साल तक धनबाद जिला फुटबाल टीम का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ी नासिर दाद खान ने 1985 में बिहार की ओर से देश के सबसे बड़े फुटबाल टूर्नामेंट संतोष ट्राफी में हिस्सा लिया। सन 1978 में फुटबाल से जुड़ने वाले नासिर भाई लगभग 14 साल तक फुटबाल खेलते रहे। फुटबाल छोड़ने के बाद उन्होंने युवा खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देना शुरू किया। धनबाद फुटबाल संघ ने 1994 में डीएफए के चुनाव में उन्हें संयुक्त सचिव चुना। इस भूमिका को भी उन्होंने बखूबी निभाया। डीएफए के लीग मैचों में रेफरी की भूमिका निभाने वाले नासिर भाई इसके एवज में मिलने वाले पैसे से ही जिंदगी रूपी गाड़ी को जैसे-तैसे खींचते रहे।
कभी मैदान में रक्षापंक्ति के मजबूत खिलाड़ी नासिर भाई की जिंदगी की रक्षापंक्ति को 'चकमा' देने के लिए मौत धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ रही है। धनबाद के भिस्तीपाड़ा स्थित किराये के मकान में नासिर भाई निश्चल पड़े हैं। शुभचिंतकों के हालचाल पूछने पर आवाज बाद में निकलती है, आंसू पहले निकल पड़ते हैं। दिल में छिपी हुई टीस आंखों के रास्ते बाहर आती है। घर में पत्नी व दो बच्चे हैं। बेटा आठ साल का तो बच्ची डेढ़ साल की है। बिस्तर पर बेसुध लेटे अपने पिता की हालत से अंजान ये मासूम इस इंतजार में हैं कि कब उनके अब्बा बिस्तर से उठकर उन्हें अपनी गोद में बिठायेंगे। हां, अपने अब्बा के कारनामों वे वाकिफ हैं। नासिर भाई तो नहीं बता सके कि वह कहां-कहां खेले लेकिन बेटे को याद है कि अब्बा गोमो में खेले, रांची में खेले-और भी कई जगह। छोटा भाई परवेज दिल्ली से प्राइवेट नौकरी छोड़ उनकी तीमारदारी को आया हुआ है। डाक्टरों ने वेल्लोर या फिर टीएमएच मुंबई ले जाने की सलाह दी है मगर घर में इतने पैसे नहीं कि इलाज के लिए बाहर जा सकें। भाई ने बताया कि अच्छे दिनों में उनके मित्र रहे पूर्व जिला खिलाड़ी सलाउद्दीन ने इस संकट की घड़ी में उनकी मदद की है। और किसी ने मदद नहीं की, इस सवाल के जवाब में नासिर भाई मुश्किल से बताते हैं, अब तक डीएफए ने 15 सौ रुपये दिए हैं। वह 'हाशमी साहब॥' कहकर चुप हो जाते हैं। पता नहीं, उनसे कोई शिकायत है या तारीफ करना चाहते हैं।
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मैं कोशिश करता हूँ की किसी तरह से नासिर भाई तक पहुचने ka उपाय खोजा जाए, और उन्हें इलाज केलिए कम से कम टाटा Memorial hospital भेजने ka बंदोबस्त किया जाए । आगे उपरवाले की मर्जी ...
ऐसे समाचारों को पढ़ कर मन विचलित हो जाता है , ये कैसा न्याय है भगवान ka जिसको जरुरत हो उसेकोई फूटी कौडी भी नही देता है और जिसे जरुरत ना हो उसे लाखों मिलते हैं । अभी अभी हमारे बिहार केमुख्यमंतरी नीतिश जी IIT topper को १ लाख रूपये ka पुरुस्कार दिया, जब वो लड़का एक आर्थिक रूपसे सक्षम घर से है फ़िर क्या जरुरत थी उसे इतनी बड़ी राशि पुरुष्कार में देने की ?
बातें तो मन में बहुत चल रही हैं पर कुछ लिखने ka मन नहीं कर रहा है , लिख कर भी क्या फायदा ....
1 comment:
Namaskar,
Can you give me details of What would be the expected Medical expenses right now. I'll try my level best to arrange me and my friends contribution.
Regards
Asif
Working with Honeywell in Bangalore,originally form Bokaro
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